दर्पण की आत्मकथा

मुझे लोग दर्पण के नाम से पुकारते हैं। मैं अति स्वच्छ व निर्मल हूँ। जो जैसी सूरत लेकर मुझ में झाँकेगा वह वैसी ही पाएगा। स्वरूप का दर्शन कराना ही मेरा काम है।

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मुझे याद है (ग्यारहवीं कड़ी)

‘युवक’ के साथ ही फिर मेरा जीवन घोर राजनीति का शुरू होता है, अत: उसे प्रारंभ करने के पहले मैं उन साहित्यिक गुरुजनों और साथियों की चर्चा कर लेना चाहता हूँ

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रूपी

वह इसके लिए पैदा नहीं हुई थी। कई बार इस दलदल से निकलने की उसने कोशिश भी की। मधुपुरी सवा सौ वर्ष पुरानी विलासनगरी है, उसके पहले वही लोग यहाँ के घने जंगलों में अपने पशुओं को चराते थे, जो अब भी उसकी सीमा के बाहर अपने छोटे-छोटे गाँवों में रहते हैं।

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पीर नहीं यह, मेरे प्राणों में पलती है प्रीति तुम्हारी!

पीर नहीं यह, मेरे प्राणों में पलती है प्रीति तुम्हारी!

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