जयंति ते सुकृतिना रससिद्धा: कवीश्वरा:

आचार्य विनोबा के भूदान-यज्ञ को छोड़कर, ऐसा कुछ नहीं हुआ है, जिसमें जनता के लिए कुछ दिलचस्पी हो। किंतु इस भूदान-यज्ञ में भी राजनीति, नहीं, कूटनीति, घुस रही है।

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मुक्तक कवि कालिदास

ऐसा प्रतीत होता है कि कालिदास ने यक्ष प्रिया के इस मर्मस्पृक् चित्रण में भरतोक्त ‘गेय पद’ को ध्यान में रखा था–

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वैज्ञानिक संपादन की एक छटा

वैज्ञानिक संपादन के विषय में कुछ कहने से लाभ नहीं, उसका रूप भर दिखा देना किसी ‘अकादमी’ का काम है। सो उत्तर प्रदेश की ‘हिंदुस्तानी एकेडेमी’ के वैज्ञानिक संपादन का एक नमूना है ‘जायसी ग्रंथावली’ का ‘प्रामाणिक संस्करण’।

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क्या बोलूँ, क्या बात है!

क्या बोलूँ, क्या बात है! नील कमल बन छाईं आँखें; राग-रंग ने पाईं पाँखें; बाण बने तुम इंद्रधनुष पर! जग पीपल का पात है!!

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तट के बंधन

अनीला को जब से उर्मि का पत्र मिला तब से उसके अंदर का अंतर्दाह निरंतर सुलगता रहा है। जब वह समझ रही थी कि एक जीवन का अंत हो चुका तभी उसमें सोई पड़ी प्राणों की चिनगारी सुलगने लगी।

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