उद्भ्रांत
अपनी पत्नी की मृत्यु के तीसरे दिन महँगू फिर मुझसे मिला। मेरे कुछ पूछने के पहले ही वह बोला– “सरकार, रात वह आई थी।”
अपनी पत्नी की मृत्यु के तीसरे दिन महँगू फिर मुझसे मिला। मेरे कुछ पूछने के पहले ही वह बोला– “सरकार, रात वह आई थी।”
उस दिन मेरी ममेरी बहन की बिदागरी थी। आँगन में, दरवाज़े पर धूम मची हुई थी। जिनके घर में बेटियाँ ही बेटियाँ हों, उनके घर में बेटियों के आदर-सम्मान का क्या कहना ?
ओ पाषाण के पुजारी! तुम्हारा देवता पत्थर है। चिर-काल से तुम पत्थर को देवता मानकर
हमें यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई है कि आचार्य शिवपूजन सहाय जी को बिहार सरकार ने उनकी चिकित्सा के लिए पाँच हज़ार रुपए का अनुदान दिया है
हे कवि, जीवन-संध्या समीप है, तुम्हारे बाल पक गए; क्या तुम्हें अपने एकांत चिंतन में पारलौकिक संदेश सुनाई पड़ता है?