संस्कृत-साहित्य में एकांकी
भारतीय नाट्य-साहित्य एकांकी की कल्पना से सर्वथा वंचित था, यह स्थापना पश्चिम के प्रति अंध पक्षपात-प्रदर्शन करने के अतिरिक्त कुछ नहीं।
निशीथ
मैं काली रात का सबसे काला धब्बा हूँ और चाँदनी रात का सबसे उज्ज्वल प्रकाश-स्तंभ। मैं वह केंद्र-बिंदु हूँ, जिससे काल की परिधि चारों दिशा में फैलती है।
दातादीन
तब मैं बी.ए. में पढ़ता था। प्रयाग विश्वविद्यालय का वह विशाल भवन और उसी के सामने के छात्रावास और उसकी बत्तीस नंबर की कोठरी, मुझे आज तक याद है। उसी में मैं रहा करता था।
जाति और रंग
एक दिन वह था कि हर गोरा, सम्राट् का जोड़ा बन कर मूँछों पर ताव दिए इठलाता रहा हमारे यहाँ–‘सम्राट भाविया पूजि सबारे’।
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