एक तमिल लोक-कथा
‘शिव’ यानी अच्छाई। अच्छाई एकबार जम करके, जड़ीभूत होकर एक खंभा बनी।
‘शिव’ यानी अच्छाई। अच्छाई एकबार जम करके, जड़ीभूत होकर एक खंभा बनी।
उठो साथियो ! निशीथ का अब हो चला विनाश और देखो व्योम में– रजनी कालिमा का अवशेष ! अब देख इधर– प्राची में रवि शोणित-सी-लाली लिए राष्ट्र के सोये हुए कुम्हलाए, शोषित-पीड़ित मानव को जगाने के लिए इस ओर संकेत करता आ रहा।
गोर्की की गिरफ्तारी और जेल में बंद किए जाने के कारण चारों तरफ क्रोधाग्नि भड़क उठी। तमाम रूस ने उसके छुटकारे के लिए आग्रह पूर्वक अनुरोध किया। टालस्टाय भी इस बीमार लेखक के लिए मैदान में उतर आया।सरकार को जनता की इच्छा के आगे मजबूर होकर झुकना ही पड़ा। गोर्की जेल से मुक्त कर दिया गया किंतु उसके बदले में घर में ही नजरबंद हो गया। यहाँ तक कि उसके रसोई-घर और खास बैठक तक में पुलिस तैनात कर दी गई। एक पुलिस का आदमी तो हमेशा ही उसके अध्ययन-कक्ष में घुस आता और उससे वाद-विवाद करने की चेष्टा भी करता।
‘मीर’ साहब ने हिंदी-सेवा का अखंड व्रत लेकर जो घोर पाप किया था, उसका प्रायश्चित उनकी अनाथा वृद्ध पत्नी कर रही हैं।
जापान में इस साहित्यिक त्रिमूर्ति के बहुत से अनुयायी हुए, परंतु उनकी उम्र कम थी इसलिए ज्योंही युद्ध आया त्योंही उन्हें सेना में जाना पड़ा।
हिंदी ने कोई रवींद्र जैसा कवि अथवा शरत चंद्र जैसा उपन्यासकार पैदा नहीं किया