समझ लेते हँसी का राज़

यहाँ क़ीमत हर इक शय की अदा करनी ही पड़ती है ये अच्छा है कि एहसाँ दूर तक ढोना नहीं होतावो अपनी राहों में ख़ुद ही बिछा लेता है काँटे भी हमें दुश्मन की ख़ातिर ख़ार भी बोना नहीं होताहमारे खूँ-पसीने से ही फसलें लहलहाती हैं यहाँ जादू नहीं चलता यहाँ टोना नहीं होतापरिंदों के बसेरों में न दाना है न पानी है ज़मा करते नहीं हैं जो उन्हें खोना नहीं होता

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काल और कला

सत्ता तो सत्ता में समा गई, पर कला को काल की कैंची भी कतर न सकी। जो सत्य है; शिव है, सुंदर है, वह चिरंतन भी है, चिर-नवीन भी।

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