भारत और भारतीयता पर विचार

शिक्षा, भाषा, अलगाववाद, आतंकवाद, सुरक्षा, वैचारिक विभ्रम विचारदारिद्रय, सत्तालोलुपता के कारण तुष्टिकरण, ग्रामों का पतन नगरों का असंतुलित विकास–ये सारे विषय इस संकलन के केंद्र में हैं। सर्वप्रथम प्रो. ब्रजबिहारी कुमार ने भारत के बौद्धिक परिवेश पर विचार किया है कि भारत का बुद्धिजीवी अपने में सिमट गया है। उसे यह नहीं दिख रहा है कि प्रजाति एवं भाषा के नाम पर भारत को तोड़ने का भीषण षड्यंत्र अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चल रहा है।

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वीरेंद्र जैन के उपन्यासों में पारिस्थितिकी चिंतन

माधव गाड्गिल कमिटी रपट को केंद्र हरित टैब्यूनल ने नकार दिया। कुछ महीनों तक माधव गाड्गिल कमिटी रपट और कस्तूरी रंगन कमिटी रपट का बोलबाला था। पारिस्थितिकी से संबंधित अब तक आये रपटों में ये दो ही सबसे चर्चित एवं विवादास्पद हैं।

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शंकर शेष के नाटकों में परंपरा और आधुनिकता

अंततः हम कह सकते हैं कि डॉ. शेष ने जिन महाभारतकालीन स्त्री पुरुषों के बारे में बताया है वह परंपरागत होकर भी आधुनिकता से समन्वित है।

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क्रूज से आइलैंड ऑफ फीमेल को

आमतौर हम जब कभी क्रूज (पानी के जहाज) से यात्रा की बात करते हैं तो, वास्कोडिगामा तथा कोलम्बस वाले कष्टों से भरे सफर का चित्र हमारी आँखों के सामने आ जाता है, लगता है चारों तरफ पानी ही पानी और बीच में अंजानों का साथ कैसा लगता होगा वहाँ?

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जीवन का साहित्यानुवाद करता एक कवि

मैं जब-जब कीर्तिनारायण मिश्र की रचनाशीलता को देखता हूँ तो सुखद विस्मय होता है। किसी रचनाकार में लगभग छह दशक की सतत रचनाशीलता देखी जाये तो यही कहा जा सकता है कि रचनात्मक प्रतिबद्धता ही उसमें नहीं है, बल्कि रचनात्मकता उसका मूल स्वभाव है।

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मेरे सृजन का एकमात्र सरोकार है मनुष्य (उपन्यासकार राजेंद्रमोहन भटनागर से बातचीत)

देश की विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं तथा राजस्थान साहित्य अकादमी के सर्वोच्च मीरा पुरस्कार व विशिष्ट साहित्यकार सम्मान से समादृत कथाशिल्पी डॉ. राजेंद्रमोहन भटनागर की कृतियों में प्राणवाही जीवंतता के पीछे उनके वैज्ञानिक विश्लेषण, यायावरी, अनुसंधान और मन की सूक्ष्म तरंगों से तादात्म्यीकरण का मनोवैज्ञानिक प्रभामंडल है।

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