भारत और भारतीयता पर विचार
शिक्षा, भाषा, अलगाववाद, आतंकवाद, सुरक्षा, वैचारिक विभ्रम विचारदारिद्रय, सत्तालोलुपता के कारण तुष्टिकरण, ग्रामों का पतन नगरों का असंतुलित विकास–ये सारे विषय इस संकलन के केंद्र में हैं। सर्वप्रथम प्रो. ब्रजबिहारी कुमार ने भारत के बौद्धिक परिवेश पर विचार किया है कि भारत का बुद्धिजीवी अपने में सिमट गया है। उसे यह नहीं दिख रहा है कि प्रजाति एवं भाषा के नाम पर भारत को तोड़ने का भीषण षड्यंत्र अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चल रहा है।