रोशनी की तलाश करती कविताएँ

कमल कुमार के नए कविता-संग्रह ‘घर और औरत’ की अधिकतर कविताओं में ‘अंधेरा’ या उससे जुड़े बिंब और संदर्भ साभिप्राय हैं। ‘अंधेरा’ अनेक व्यंजनाओं को समेटे हुए हैं और प्रायः सभी का सीधा संबंध नारी मात्र की तकलीफ और यातना से है।

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जब जब देखा लोहा देखा

बाबूजी (स्वर्गीय प्रो. गोपाल राय) के पंचतत्व में विलीन होने के उपरांत उनकी अस्थियाँ बिनते समय एक कठोर तप्त वस्तु के हाथ से स्पर्श होते ही माथा ठनका।

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वाह रे जी

वह आलोचक है। बहुत बड़ा है। बड़ा वह इसलिए नहीं है कि वह आलोचक है। वह आलोचक बड़ा है। उसकी ऊँचाई बाँस से भी ज्यादा है, ताड़ से भी ज्यादा है। उस का फैलाव, उसका दबाव पहाड़ से भी ज्यादा है।

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यथार्थ की परतें खोलती ग़ज़लें

मधुवेश द्वारा रचित ग़ज़लों का पहला संग्रह ‘क़दम-क़दम पर चैराहे’ सामाजिक-राजनीतिक यथार्थ की तहों की खोज-ख़बर लेने वाली ग़ज़लों को सामने लाता है

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केश झाड़ती लड़की

दिन तो शुरू हुए थे दिन से बदल गए चलकर आगे।समय बीत जाता फूलों के नामों को गिनने में परीकथा जैसी ही कोई निजी कथा बनने में

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