रेवती

दो पन्नों की चिट्ठी में लगभग एक ही जैसी बात, बार-बार घुमा-फिरा कर, लिखी रहती। पढ़कर ऐसा लगता था जैसे किसी ने कपूर की डली पर लपेटा हुआ कागज खोल कर सामने रख दिया हो। यादों की सुगंध से मन सुवासित हो उठता।

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मधुकर सिंह की कहानियाँ

किसान, मजदूर, दलित, शोषित, वंचित आमजन के दुख-दर्द को, उनके संघर्ष को अपनी कहानियों का विषय बनाने वाले सुप्रसिद्ध कथाकार मधुकर सिंह की रचनाओं में उनके प्रति गहरी संवेदना है, इसलिए लेखन के साथ ही उन्होंने उन संघर्षों में भागीदारी भी की।

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नेहपाश

एकांत प्रहर में अकसर मेरे भीतर कला खदबदा तीस्वप्न कुलबुलाते नूतन कल्पनाएँ लेकर किसी श्वेत, मूक कागज़ कोकला रेखाओं से भरना

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दर्द उधार दो

मुझे थोड़ादर्द उधार दोआँखें जो आज सूख चुकीं उनमें थोड़ी नमी चाहिए आत्मा जो चैन से सो रही उसे तड़प से तृप्त करो मन का सागर शांत पड़ा है

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