घड़ी का भुगतान

एक बड़ी दुविधा में फँसा था वह। फिलहाल, नोटिस की अवहेलना करना उसका इरादा नहीं है...घड़ी से बढ़कर उनकी इज्जत दाँव पर लगी थी, उसने सोचा, और त्वरित ही घड़ी का भुगतान करने में ही उसकी भलाई है।

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एक बच गया आदमी जो चीखा

फिलहाल तो हारी हुई है बारबार पंजा चलाती यह उफनी हवा बंद कुंडियों से। और वह हादसे से बचे किसी भी स्वार्थी आदमी-सा भयभीत अपनी खैर का जश्न मना रहा है भीतर।

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राह से मंजिल

एक सवाल अकेले में अंदर ही अंदर मथे जा रहा था और फिर अल्पकाल में भीतर ही भीतर कहीं से एक आवाज जेहन में टकराई, ‘वस्तुतः तुम्हारी मत ही मारी गई है... क्या गरूर करना नौकरी-पद-स्टेट्स का...आखिर, इस नश्वर-नाशवान काया का गुमान काहे का...’

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उस दिन की बात

आँखों देखी यह घटना तो सच है ही। सच ओझल न हो जाए, इसलिए मैंने कल्पना का सहारा नहीं लिया है। वैसे काल्पनिक उड़ान की गुंजाइश तो सभी जगह होती है।

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स्त्री विमर्श एक सही सोच

इस समय समाज के बीच स्त्रियों की स्थिति और परिस्थितियाँ जैसे बदली हैं और बदल रही है उनमें ‘स्त्री दृष्टि’ और स्त्री सोच का परिदृश्य बदलना चाहिए था। नई पीढ़ी की युवतियाँ, शिक्षित, प्रशिक्षित और प्रोफेशनल हैं।

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