तेजेंद्र शर्मा का सृजन-संसार

कथाकार तेजेंद्र शर्मा का रचनात्मक व्यक्तित्व इतना सम्मोहक है कि हम उनसे दूर रहना भी चाहें, तो वे हमारी ओर बाँहें पसार मुक्तकंठ गा उठते हैं–‘जो तुम न मानो मुझे अपना, हक तुम्हारा है/यहाँ जो आ गया इक बार, बस हमारा है!’ कथाकार तेजेंद्र शर्मा के सृजन-संसार को ‘नई धारा’ का सलाम!

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राखी की चुनौती

बहिन आज फूली समाती न मन में तड़ित् आज फूली समाती न घन में, घटा है न फूली समाती गगन में लता आज फूली समाती न वन में।

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ये घर तुम्हारा है

जो तुम न मानो मुझे अपना, हक तुम्हारा है यहाँ जो आ गया इक बार, बस हमारा हैकहाँ कहाँ के परिंदे, बसे हैं आ के यहाँ सभी का दर्द मेरा दर्द, बस खुदारा हैनदी की धार बहे आगे, मुड़ के न देखे न समझो इसको भँवर अब यही किनारा है

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होमलेस

‘देखिए सिकंदर, आप ठीक साढ़े ग्यारह बजे पहुँच जाइएगा। यह समझ लीजिए कि यहाँ भारत या पाकिस्तान की तरह नहीं चलता है। अगर एक वक्त दिया जाता है तो पाबंदगी से उस पर अमल भी किया जाता है। आप मेरी बात समझ रहे हैं न?’ वे अपनी बात सिकंदर तक पहुँचाने का पूरा प्रयास कर रही थीं। सिकंदर भी थोड़ी झिझक और थोड़ी इज्जत की शर्म लिए खड़े थे, ‘बाजी अब आप ही देखिए न, साउथहॉल से फिंचले सेंट्रल तक आना कोई आसान बात तो नहीं न जी। रास्ते में नॉर्थ सर्कुलर पर भी गाड़ी चलानी पड़ती है। नॉर्थ सर्कुलर के ट्रैफिक से तो आप वाकिफ हैं न बाजी?’

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जीवनमूल्य और विश्वसंस्कृति की कहानियाँ

कथाकार तेजेंद्र शर्मा ने अपनी कहानियों से समकालीन विमर्शों की चर्चा की है, लेकिन उनके केवल नारे नहीं लगाए हैं। बीच-बीच में लेखकीय टिप्पणी और पात्रों की स्थिति द्वारा ही वह अपनी बात कह जाते हैं।

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