कोख का किराया

आज मनप्रीत, हारी हुई सी, घर के एक अँधेरे कोने में अकेली बैठी है। वह तो आसानी से हार मानने वालों में से नहीं है। आज तो पूरा कमरा या पूरा घर ही पराजय का पर्याय सा बना हुआ है। सूना, अकेला, सुनसान सा घर! अभी कल तक तो घर में सब कुछ था–खुशी, प्रेम, विश्वास! हत्या हुई है! भावनाओं की हत्या! किंतु मनप्रीत ने कब किसकी भावनाओं का आदर किया है! अपने वर्तमान के लिये वह किसे उत्तरादायी ठहराये? वर्तमान कोई किसी साधु महात्मा द्वारा जादू के बल पर अचानक हवा में से निकाला हुआ फल या प्रसाद तो है नहीं! अतीत की एक-एक ईंट जुड़ती है तब कहीं जा कर बनता है वर्तमान!

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डरे, सहमे, बेजान चेहरे

डूबे हैं गहरी सोच में भयभीत माँ, परेशान पिता अपने ही बच्चों में देखते हैं अपने ही संस्कारों की चिता।

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बेतरतीब जिंदगी

कुछ डरते डरते वह बॉम्बे ब्रैसरी रेस्टोरेंट में घुसा। वैसे राजीव प्रसाद उसके साथ थे। वे अपनी मर्सिडीज में बैठा कर उसे अपने साथ ले गए थे। वरना इतने बड़े समारोह में वह आ भी कैसे सकता था। जब राजीव जी ने उससे पूछा था, ‘भाई नरेन जी आजकल नौकरी के क्या हाल चल रहे हैं?’ बस किसी तरह अपनी हिम्मत सँजोते हुए कुछ शब्द उसके मुँह से निकल पाए थे, ‘जी भाई साहब, लड़ाई चल रही है। वैसे रिडंडैन्सी का पत्र तो मिल गया है। यदि अगले सप्ताह तक कोई बात नहीं बनी तो बस नौकरी से बाहर ही समझिए।’

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मेरे पासपोर्ट का रंग

मेरा पासपोर्ट नीले से लाल हो गया है मेरे व्यक्तित्व का एक हिस्सा जैसे कहीं खो गया है।मेरी चमड़ी का रंग आज भी वही है मेरे सीने में वही दिल धड़कता है

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हिंदी की कथा भूमि का विस्तार

स्त्री का प्रतिकार और स्वावलंबन तेजेंद्र शर्मा की कहानियों की बड़ी ताकत है। पुरुषसत्ता की धूर्तता और क्रूरता के कई रूप भी इसी क्रम में उजागर होते हैं। जैसा कि पहले भी संकेत दिया गया, यहाँ तक आते आते उनके कथा शिल्प में निखार आया है और भाषा पर पकड़ मजबूत हुई है। ‘कल फिर आना’ जैसी एक दो विवादास्पद कहानियों को छोड़ दें तो इस संग्रह की अधिकांश कहानियाँ विदेशों में प्रवासी और देश में अनिवासी कहलाने वाले भारतीयों की बड़ी जमात (समाज) के जीवन की उस जद्दोजहद को सामने लाती हैं जो अब तक हिंदी कहानी की जद से बाहर थीं।

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दीवार में रास्ता

‘छोटी जान आजमगढ़ आ रही हैं।’ मोहसिन को महसूस हुआ कि अब दीवार में रास्ता बनाना संभव हो सकता है। भावज ने पोपले मुँह से पूछ ही लिया, ‘अरे कब आ रही है? क्या अकेली आ रही है या जमाई राजा भी साथ में होंगे? सलमान मियाँ को देखे तो एक जमाना हो गया है।...वैसे, मरी ने आने के लिये चुना भी तो रमजान का महीना!’ भावज की आँखों के कोर भीग गए।

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