चलते-फिरते दिन

मगर क्षणों में ही बाबूजी की खाट पर ही आँखें नम हो आईं, ‘...क्या बदहाल बनी है उनकी जिंदगी!’ वह बुदबुदाए और अंदर से छटपटाते-कराहते से कहीं गुम हो गए।

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वंदे मातरम्

अपने युग से असंतोष स्वास्थ्य का लक्षण हैं, वरना हम आत्मतृष्ट हो जाएँगे तो नया सृजन कैसे करेंगे। लेकिन बलिदानों की परंपरा हमारी विकास यात्रा को हमेशा रौशन करेगी, प्रेरणा देगी, वंदे मातरम्!

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प्रसाद की ‘कामायनी’

‘कामायनी’ को उसके इस पूरे परिप्रेक्ष्य और उसकी कथ्य-संरचना के साकल्य में देखने की अपेक्षा रही है और, जिसकी उपेक्षा प्रायः हिंदी के कवि-आलोचकों ने लगातार की है। इसका एक बड़ा कारण उपनिषद् और भारतीय दर्शन-विरोधी उनकी पूर्वग्रस्त धारणा रही है।

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दलित चिंतन की स्वतंत्रता

दलित चिंतन में सामूहिकता नहीं है तो वह दलित चिंतन नहीं है। उसे इस अभिशाप का सामना इस रूप में करना है कि वह बहुतों के लिए काम कर रहा है। परोपकारी मनुष्यों के लिए यह सुखद स्थिति है। दुनिया में कोई आदमी अकेला नहीं है।

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जहर

बहुत दूर तक नहीं जाना है आसपास ही देखना है बगल में सहमी-सहमी खड़ी हवा को छूना है समझने के लिए कि जहर क्या होता है

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