नींद में हैं शब्द
कोई शब्दों से संवाद करना चाहता है वे मौन हैं मौन के अंदर व्यथा, आक्रोश, मुस्कान तलाशता है वहाँ कुछ नहीं है शब्द दरवाजे उढ़का कर सो गए हैं
कोई शब्दों से संवाद करना चाहता है वे मौन हैं मौन के अंदर व्यथा, आक्रोश, मुस्कान तलाशता है वहाँ कुछ नहीं है शब्द दरवाजे उढ़का कर सो गए हैं
लाते हैं खुशियाँ ही खुशियाँ पूजा घर नहीं देखता बढ़ने लगी है आँधी उम्मीद की जैसे पास आने लगी खुशी की आहट
यत्न जिनके सफल हो गए झोंपड़ी से महल हो गएउनको छूना असंभव लगा जो समंदर के तल हो गए
देशभक्ति के खूब नारे उछालता, अपने-आप को दक्षिणपंथी बताता न वामपंथी, समय देख गिरगिट की तरह रंग बदलता, शुद्ध अवसरवादी होता है सफेदपोश।
खाने की मेज पर सौजन्य, शिष्टाचार, टेबुल मैनर्स का प्रदर्शन दोनों परिवारों की ओर से जम कर हुआ। सबने अपने-अपने पत्ते सीने से सटा कर छुपाए हुए तो थे मगर कोई राज किसी से नहीं छुपा था–बेडरूम में दरवाजा बंद करके हम तीनों आपस में फुसफुसाते रहे।
जिसको चलना भी दूभर लगा सबसे अच्छा उसे, ‘घर’ लगामाँ के चेहरे पे सुख था अलग पुत्र जब नौकरी पर लगा