देश को दुकान मत करो
खूब दिलेरी दिखा मगर खँडहर मकान मत करोभीलनी से राम तर गए इस तरह गुमान मत करोजो हुआ हँसी मजाक में पर लहू लुहान मत करो
खूब दिलेरी दिखा मगर खँडहर मकान मत करोभीलनी से राम तर गए इस तरह गुमान मत करोजो हुआ हँसी मजाक में पर लहू लुहान मत करो
मिला जब कुछ नहीं खलिहान से जमीं पर आसमां बोने लगेपसीने की कमाई क्या कहें नजर के सामने खोने लगेकिसी ने शील को सीता कहा जमाना दूध से धेले लगे
अदब से प्रभु पेश आते तो अहल्या सलामत रही होतीअगर व्याकरण ही नहीं होता नदी बहता, खट्टी दही होतीलगी आग सीता परीक्षा में पुरुषों की होती, सही होती
फकत अरमान के दानें वो बोते नर्म माँटी में कभी पुरबा कभी पछुवा, गई ललकार ये मौसमनिकल कर झाँकता है बीज का नवजात सा कल्ला उसी के साथ सौ दुश्मन लिए अवतार ये मौसमहथेली पर टहलती खेत की हँसमुख नई खुशियाँ मगर लेकर कोई भाग झपट्टामार ये मौसम
दुख की घड़ी में एक टुकड़ा साथ क्या माँगा इस नींबू माँगकर बीमार दादी के लिए पड़ोसी नकछेदी साव को लगा था कि दादा ने जान ही माँग ली उसकी जबकि नकछेदी के साँवरे बदन पर लकदक साफ शफाक धोती कुर्ता जो शोभायमान देख रहे हैं आप उसकी बरबस आँख खींचती सफाई दादा के कारीगर हाथों की करामात ही तो है।
नींद! चादर ओढ़कर खुद सो गई उफ्फ्! खुमारी से लदा चहरा हुआथा मुसीबत का ख़जाना सामने आँख चौंध कान भी बहरा हुआरोज मिलना था जिसे चौपाल पर वो कबीला में दिखा ठहरा हुआ