तुम्हारे आतंक से

मेरी समझ से मेरा तुम्हारा रिश्ता सड़क पर चल रहे दो अनजान आदमी की तरह है जिसे अगले चौराहे पर जाकर मुड़ जाना है अलग-अलग दिशाओं में अपने-अपने काम पर जाने के लिए

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कलम, आज उनकी जय बोल

रामधारी सिंह दिनकर प्रखर और संवेदनशील कवि थे। उनके काव्य व्यक्तित्व का निर्माण स्वाधीनता संग्राम के घात-प्रतिघात के बीच हुआ था। उस समय देश में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष निरंतर बढ़ रहा था। समय ऐसा था जहाँ वायवीय निरुद्देश्य गीतों की गुंजाइश न थी। इसीलिए वे समय की विडंबनाओं से उलझते रहे। उनका समूचा लेखन पराधीनता के विरोध, शोषण पर प्रहार तथा समता के समर्थन की पहचान है। अपने युग का तीखा बोध था उन्हें। वे कहते थे मैं रंदा लेकर काठ को चिकना करने नहीं आया हूँ। मेरे हाथ में कुल्हाड़ी है, जिससे मैं जड़ता की लकड़ियों को फाड़ रहा हूँ।

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हिंदी में अच्छे नाटकों की कमी नहीं

डॉ. सिद्धनाथ कुमार ने ‘नाटक’ के शास्त्र-व्यवहार को समझने-समझाने में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी, और इस संदर्भ की अनेक पुस्तकों से साहित्य जगत को समृद्ध किया। वे इतने सहज और सरल थे कि उनसे बातचीत करने के प्रस्ताव पर उनकी ओर से ‘नहीं’ का कोई प्रश्न ही नहीं था। उनके जीवनकाल के अंतिम दिनों एक शाम मैं उनके आवास पर पहुँच ही गया। देखा, अपने कंप्यूटर पर बैठे कुछ लिख रहे हैं। उस समय नाटक की भाषा पर कुछ लिख रहे थे। मैंने तत्काल प्रश्न किया, ‘सामने कोई लिखित सामग्री नहीं है, आप विचारों को सीधे टाइप कर लेते हैं?’ उनका उत्तर था, ‘आदत हो गई है। 1954 में जब मैं रेडियो में था, तभी से टाइपराइटर पर सीधे लिख रहा हूँ–नाटक, आलोचना, सब कुछ, केवल कविता को छोड़कर। स्क्रिप्ट-राइटिंग में इतना समय नहीं था कि रफ लिखूँ, फिर फेयर करूँ। सो, एक ही बार में फेयर लिखने की आदत हो गई। टाइपराइटर के अक्षर घिस गए, तो अब कंप्यूटर पर लिखने लगा हूँ।

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या तो हमारा नाम हवा

या तो हमारा नाम हवा में उछाल दे या फिर शिकन की धूप से बाहर निकाल देप्यासों की इस जमात में बादल के नाम पर होंठों पे आँसुओं का समंदर ही ढाल देजमने लगी है बर्फ जो रिश्तों के दरमियाँ आए कोई करीब लहू को खँगाल दे

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जरीवाला जाकेट

जैसे ही जूठी प्लेटें उठाकर एक ओर रखे ड्रम में डालने के लिए जग्गू झुका कमर में दर्द की एक लहर ऊपर से नीचे तक दौड़ गई। एक आह निकली जो सिर्फ उसने सुनी। बाकी सब तो मस्ती में डूबे थे। दुःख उसका अपना था। जग्गू को न ड्रम से आ रही जूठन की गंध ने छुआ, न नीम के पेड़ से ड्रम में झरी नीम की पत्तियों ने। छुआ होता तो पता चलता कि कड़ुवाहट कहाँ ज्यादा घुली है–पत्तियों में या खुद उसके अंदर! पर अपनी पीर लिए वह देर तक वहाँ खड़ा नहीं रह सकता था। केटरर हरनाम सिंह देख लेता तो काम-चोरी के लिए डाटता या आइंदा काम पर न आने का फरमान जारी कर देता। लँगड़ाता हुआ, जग्गू फिर से स्वागत-समारोह में आए अतिथियों के बीच जाकर जूठी प्लेटें इकट्ठी करने लगा। उसे प्रभु पर, यदि वह कहीं है तो, क्रोध हो आया। क्यों उसने...लकवे के हल्के अटैक के कारण उसके बाएँ पैर को कमजोर कर दिया। इस विकलांगता की वजह से ही उसे वेटर का पद न देकर केवल प्लेटें उठाने का काम दिया गया।

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महकी हुई बहार में फूलों

महकी हुई बहार में फूलों की राह से चूमा है मेरा नाम किसी ने निगाह सेवो जो है एक हर्फ तेरी याद से जुड़ा निकला नहीं है आज भी मेरी पनाह सेसच फिर से मुजरिमों के ही पैरों पे जा गिरा हासिल न कर सकी जो अदालत गवाह से

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