जीवन और साहित्य में वंचितों की आवाज
अपने राजनीतिक जीवन में ऐसी सैकड़ों जनसभाओं में उन्हें बेशुमार ढंग से भाषण करते हुए लोगों ने सुना था। कई बार ऐसे भी वाकिये हुए हैं, जब उन्हें उन्नाव और लखनऊ की चुनाव सभाओं में सिर्फ मंच पर बैठे हुए लोग ही सुन रहे होते थे, पर मुद्रा जी पर कोई फर्क नहीं पड़ता था। वे अपनी चिरपरिचित मुद्राओं के साथ जनजागरण अभियान में लगे रहे।