जीवन और साहित्य में वंचितों की आवाज

अपने राजनीतिक जीवन में ऐसी सैकड़ों जनसभाओं में उन्हें बेशुमार ढंग से भाषण करते हुए लोगों ने सुना था। कई बार ऐसे भी वाकिये हुए हैं, जब उन्हें उन्नाव और लखनऊ की चुनाव सभाओं में सिर्फ मंच पर बैठे हुए लोग ही सुन रहे होते थे, पर मुद्रा जी पर कोई फर्क नहीं पड़ता था। वे अपनी चिरपरिचित मुद्राओं के साथ जनजागरण अभियान में लगे रहे।

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मोह से दंशित समर्पण के प्रबल

मोह से दंशित समर्पण के प्रबल प्रतिवाद से पाप अपना धो रही सत्ता महज उन्माद सेतोड़कर सारी हदें जो प्रश्न संसद में उठे देखकर पथरा गईं आँखें मुखर संवाद सेमूल्य बदले जा रहे हैं आपसी संबंध के प्यार के बल से प्रलोभन जातिगत अनुवाद से

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दूर सितारों के झुरमुट में परियाँ

दूर सितारों के झुरमुट में परियाँ हैं माँ कहती थीं उन्हें नहाने को सोने की नदियाँ हैं माँ कहती थींबच्चों को जन्नत की सैर करा देती हैं लम्हों में उनके हाथों में जादू की छड़ियाँ हैं माँ कहती थींइस दुनिया का हुस्नो-जवानी ढल ही जाना है एक दिन हम मिट्टी की चलती-फिरती गुड़ियाँ हैं माँ कहती थीं

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लखनऊ का ऐतिहासिक रेखाचित्र

उन्नीसवीं शताब्दी यदि भारतीय इतिहास, राजनीति, संस्कृति, समाज, धर्म, शिक्षा और भाषा आदि के क्षेत्रों में आमूल-चूल परिवर्तनों की शताब्दी है,

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‘अक्करमाशी’ प्रसंग अर्थात हणमंता राव लिंबाले

दलित साहित्य में द्विज जारकर्म की व्यवस्था के किसी भी तरह के लेखन के लिए कोई स्थान नहीं।

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गठरी

एकाकी अम्मा को भरी-पूरी तेज रफ्तार दुनिया नहीं सुहाती, तो दुनियादारी में आपादमस्तक डूबी जानकी को अम्मा का बड़बोलापन बेतरह चुभता है.

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