नवगीत की वस्तुवादी आलोचना

‘नवगीत का लोकधर्मी सौंदर्यबोध’ समीक्षक एवं नवगीतकार राधेश्याम बंधु की नवगीत की आलोचना की यह तीसरी पुस्तक है।

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भ्रष्ट व्यवस्था की उत्सवधर्मिता का आख्यान

सूखा पानी गाँव के ओलापीड़ित किसान राम प्रसाद ने कुएँ में रस्सी से लटककर आत्महत्या कर ली, ठीक उसी समय सरकारी अमले नगर उत्सव में व्यस्त थे।

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कोई मसअला हल तो हो

कोई मसअला हल तो हो आज नहीं हाँ कल तो हो जो इंसाफ़ सभी को दे ऐसा राजमहल तो हो तुझमें भटकूँ जीवन भर पहले तू जंगल तो हो

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लुटा कर हर ख़ुशी अपनी तू जिसका साथ पाए है

लुटा कर हर ख़ुशी अपनी तू जिसका साथ पाए है कहाँ दौलत ये हरजाई किसी के साथ जाए है दहेजों के लिए जब लौटकर बारात जाए है

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फूलों-पत्तों ने मिल-जुल कर क्या-क्या साज सजाए हैं

फूलों-पत्तों ने मिल-जुल कर क्या-क्या साज सजाए हैं ये क्या जाने इन पेड़ों ने कितने पत्थर खाए हैं

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