साहित्य केवल बुद्धि से नहीं रचा जाता
कविताएँ लिखनी शुरू की, तो अपना उपनाम रखा ‘घायल’। वर्षों तक ‘घायल’ ही रहा, अमरेंद्र कुमार ‘घायल’।
कविताएँ लिखनी शुरू की, तो अपना उपनाम रखा ‘घायल’। वर्षों तक ‘घायल’ ही रहा, अमरेंद्र कुमार ‘घायल’।
ऊँची-ऊँची चीड़ और देवदार की डालियों को आकाश छूते हुए देख कर मेरा कवि मन अक्सर कह उठता था ‘ऐ आसमाँ, तेरी निगहबानी में, हमने मुद्दत से पलकें नहीं झपकाएँ हैं।’
उसे ब्लँकेट भेजनेवाले ज्योबाबा की, फोटो में दिखाई देनेवाले उनके घर की, ब्लँकेट की याद आई। वह व्याकुल हो गया। दुःखी हो गया। उसे लगा, वह एकदम निराधार हो गया।
तुम्हारे होने भर से धरती महसूसती थी अपनापन और प्यार ऐसा कि तुम हो अपने धरती पर बरसाने वाले स्नेहहीरा-मोती तुम जोतते थे मुझे तो लगता था कि रूई के फाल से
संग्रह में सुरेश उनियाल की सभी कहानियाँ जीवन से जुड़े सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक भी, पक्ष से सीधे तादात्म्य स्थापित करती हैं। कहानियों की भाषा जमीनी है और अभिव्यक्ति सूझ-बूझ के साथ पाठक में विलय होने में समर्थ है।
‘मैं गाँव पर क्यों लिखती हूँ’ का जवाब इस सवाल में छिपा है कि मैं क्यों लिखती हूँ! इतने सारे काम थे करने के लिए और एक स्त्री को तो काम बताने वाले लोग पहले से ही मौजूद रहते हैं, घर के बाहर भी...घर के भीतर भी।