दर्द भी साथ रख नमी के लिए

दर्द भी साथ रख नमी के लिए बीज बोने हैं कुछ खुशी के लिएकाम बेमन का करना पड़ता है दूसरों की कभी खुशी के लिएमेरी दुनिया में है यही काफी पास जुगनू है रोशनी के लिए

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ऐसे दिन थे

ऐसे दिन थे बहुत चिरैया घर आती थीं गाने कुछ ताने दादी देती थीं कुछ अम्माँ के ताने। फिर भी निसि-दिन डाले जाते थे आँगन में दाने। कर्ज़े लदे हज़ार…

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समीक्षकों के समीक्षक कुमार विमल

मैं कुमार विमल को ‘समीक्षकों का समीक्षक’ मानता हूँ। पुस्तकें कैसे समीक्षित की जाती हैं, समीक्षकों को इसे कुमार विमल से सीखना चाहिए। इधर ‘चिंतन-सृजन’ के संपादक डॉ. बी.बी. कुमार ने उनसे मेरी पुस्तक ‘उत्तर-आधुनिकता : बहुआयामी संदर्भ’ की समीक्षा लिखने का आग्रह किया था। उन्होंने यह दायित्व स्वीकार कर लिया था, पर दुर्योगवश वह समीक्षा पूरी नहीं हो पाई।

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वार्तालाप

यह क्या हुआ कि जब मर्जी हुई तभी लगा दिया फोन और खामखाँ सामनेवाले की मुसीबत पैदा कर दी उफ! किस तरह मोबाइल का मिसयूज कर रहे हैं ये लोग।

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चाँदनी चौक

गँठरी में मैं बाँध खेत-खलिहान उठाकर लाया हूँ। लोग बताते हैं अब मेरा प्रेत गाँव में बसता है किसी आम-बरगद के नीचे खड़ा अकेला हँसता है। मैं चाँदनी चौक में अपना गाँव खोज बौराया हूँ।

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