…क्योंकि सपना है अभी भी

तोड़कर अपने चतुर्दिक का छलावा जबकि घर छोड़ा, गली छोड़ी, नगर छोड़ा कुछ नहीं था पास बस इसके अलावा  विदा बेला, यही सपना भाल पर तुमने तिलक की तरह आँका था

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खानाबदोशी

इस खानाबदोशी में धूप से बचने के लिए मुझे एक छाते की दरकार थी जबकि सारे रंगीन छाते मुल्क के बादशाह के महल में सजाकर रखे गए थे

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सांस्कृतिक वर्चस्ववाद

भारत को ब्रिटिश औपनिवेशिक तंत्र की गुलामी से मुक्ति की घोषणा के बाद इसका सामाजिक-राजनैतिक एवं धार्मिक स्वरूप क्या हो या कैसा हो, इस पर राष्ट्र निर्माता एवं युग-द्रष्टा बाबा…

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