चेहरे
The crowd crowds around the emperor in the gardens of the Elysee by Nicolas Toussaint Charlet- WikiArt(1)

चेहरे

भीड़ कभी-कभी महज भ्रम होती है कभी दिखती, कभी अदृश्य होती है कभी चलती, कभी रुकती है कभी सोती, कभी झुकती है।

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नामवर सिंह एक आलोचक का आत्म-संघर्ष

वास्तव में जिस नामवर सिंह की आलोचना का लोहा माना जाता है, उसकी निर्मिति के पीछे एक आलोचक के रूप में उनका आत्म-संघर्ष है। ‘कविता के नए प्रतिमान’ के प्रथम संस्करण की भूमिका में वे लिखते हैं–‘कविता के नए प्रतिमान आलोचना के उस सहयोगी प्रयास का अंग है,

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 थियेटर
They Cha U Kao, Chinese Clown, Seated

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नेपथ्य के वादक थोड़ा झिझक रहे थे पतझर से पृथ्वी सो रही थी पहाड़ से चिपककर भय में तुमने कहा कि मेरा वादक पहले सोई पृथ्वी को जगाए

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 थियेटर
They Cha U Kao, Chinese Clown, Seated

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इन अभागे दिनों में कलाकार के कपड़े फटे हों जब मैं कैसे जगा दूँ सोई हुई पृथ्वी को सपने देखते पहाड़ को और यह भी कि मेरा समय रेत से घिरा है पानी से नहीं

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