सामने जो कहा नहीं होता
नाव क्यों उसके हाथों सौंपी थी नाखुदा तो खुदा नहीं होतातप नहीं सकता दु:ख की आँच में जो खुद से वो आश्ना नहीं होता
नाव क्यों उसके हाथों सौंपी थी नाखुदा तो खुदा नहीं होतातप नहीं सकता दु:ख की आँच में जो खुद से वो आश्ना नहीं होता
लड़की का बाप सीधा-सादा आदमी था। एक बार भाग कर गया तो दुबारा नहीं आया। उसका चाचा इधर-उधर से रमेश के पिता जी पर दबाव बनाने की कोशिश करता रहा। मगर कोई फायदा नहीं हुआ। अंत में हारकर बैठ गया। रमेश के अपहरण का जो केस बना था वह चलता रहा। लड़की वालों की तरफ से भी दहेज उत्पीड़न का एक फर्जी केस लगा दिया गया।
गुमशुदा कुछ होता रहा है सदियों से तो एक घर गुमशुदा होता रहा है ताखे पर जिसके किताबें रखी होती हैं नज्मों की
वेदनाएँ दस्तकें देने लगीं इतना मत इतराइए उल्लास परजो हो खुद फैला रहा घर-घर इसे पाएगा काबू वो क्या संत्रास पर
छोटे शाह के नजदीकियों को तमाम हालात का इल्म था। वो मैनेजर की बेजा हरकतों से भी वाकिफ़ थे। पर शाह मंजिल की दीवारों पर उनकी गिरफ्त कमजोर हो चली थी। शाह मंजिल की तमाम बेगमें बस्ती के अपराधियों के हाथों बेबस हो गई थीं।
काट ले गया थान से आधी लौकी आधा चोर आधी ईमानदारी छोड़ गया वह खुश है लौकी बैंक से