समय
माँ को गए जाने कितनेबरस बीत चुके हैं आज भी वो मुझेहर दिन नींद से जगाती है जलती हुई मशाल-सीअंधकार में राह सुझाती है डूबने को होता हैजब संसार के…
माँ को गए जाने कितनेबरस बीत चुके हैं आज भी वो मुझेहर दिन नींद से जगाती है जलती हुई मशाल-सीअंधकार में राह सुझाती है डूबने को होता हैजब संसार के…
(मूल कन्नड़ से हिंदी अनुवाद: टी.जी. प्रभाशंकर प्रेमी) पोखर के तट पर एक पेड़ पोखर के अंदर दूसरा पेड़ ऊपर सचमुच का पेड़ नीचे प्रतिबिंब पेड़ लहरें जब उठती हैं…
(मूल कन्नड़ से हिंदी अनुवाद : टी.जी. प्रभाशंकर प्रेमी) हमारे सपने में खिले फूल जाने किसने फाड़ा! हरे धुन में हमें डुबोया गीत कहाँ अब? हमारी आस तैराया सरोवर हाय!…
(मूल कन्नड़ से हिंदी अनुवाद : टी.जी. प्रभाशंकर प्रेमी) सूरज-रूपी पेड़ में नील अंबर भर तरुमूल, जटा दिन रूपी शाखा डाल में धूप रूपी अंकुरित फूल खिलकर फूल रोशनी रूपी…
(मूल कन्नड़ से हिंदी अनुवाद : टी.जी. प्रभाशंकर प्रेमी) जलते दिन के ताप में हरा भुन गया था साँस नहीं ठंडी हवा में सफेद पन्ने पर मसि फेंकने जैसे एकला…
(मूल कन्नड़ से हिंदी अनुवाद : टी.जी. प्रभाशंकर प्रेमी) हे दर्पण! आँखें हैं क्या तुम्हें भी?या! दर्पण की है क्या मेरी आँखें?तुम देख रहे हो न मुझे?या मैं देख रहा…