अपने अपने नामवर
बाद में जब वे सहाराश्री से जुड़े तो उन्हें फोन किया। उन्होंने कहा कि एक साप्ताहिक पत्र शुरू होनेवाला है। बेहतर होगा, एक बार आप मंगलेश डबराल से मिल लें। उनके कहने के बावजूद मैं मंगलेश जी से मिलने नहीं गया। मंगलेश जी से मेरा परिचय बहुत पहले से था मगर कभी भी उन्होंने ऐसी कोई उत्सुकता नहीं दिखाई कि उनसे मैं मिलता। फिर भी अपने बलबुते मेरा संघर्ष जारी था। बहुत बाद में साहित्य अकादेमी परिसर में नामवर जी मिल गए। वे पार्किंग में गाड़ी से उतर रहे थे। गाड़ी सहारा की ओर से उन्हें मिली थी। देखा तो रुक गए।