अपने अपने नामवर

बाद में जब वे सहाराश्री से जुड़े तो उन्हें फोन किया। उन्होंने कहा कि एक साप्ताहिक पत्र शुरू होनेवाला है। बेहतर होगा, एक बार आप मंगलेश डबराल से मिल लें। उनके कहने के बावजूद मैं मंगलेश जी से मिलने नहीं गया। मंगलेश जी से मेरा परिचय बहुत पहले से था मगर कभी भी उन्होंने ऐसी कोई उत्सुकता नहीं दिखाई कि उनसे मैं मिलता। फिर भी अपने बलबुते मेरा संघर्ष जारी था। बहुत बाद में साहित्य अकादेमी परिसर में नामवर जी मिल गए। वे पार्किंग में गाड़ी से उतर रहे थे। गाड़ी सहारा की ओर से उन्हें मिली थी। देखा तो रुक गए।

और जानेअपने अपने नामवर

…क्योंकि सपना है अभी भी

तोड़कर अपने चतुर्दिक का छलावा जबकि घर छोड़ा, गली छोड़ी, नगर छोड़ा कुछ नहीं था पास बस इसके अलावा  विदा बेला, यही सपना भाल पर तुमने तिलक की तरह आँका था

और जाने…क्योंकि सपना है अभी भी
 मेरा बचपन मेरा जीवन
Children by the sea by Charles Atamian- WikiArt

मेरा बचपन मेरा जीवन

अम्मा मुझे अबूझ पहेली लगतीं। हमलोग दिनभर भारी श्रीनाथ को गोद में टाँगे फिरते हैं। मैदान में खेलते कम इसकी चौकसी अधिक करते हैं कि कंकड़-पत्थर बीन कर न खा ले। लेकिन आम्मा आरोप लगाती हैं। अम्मा का असमंजस अब समझ में आता है।

और जानेमेरा बचपन मेरा जीवन
 मुहब्बत में तुझे ठोकर लगी है
Harvester by Nikolai Kuznetsov- WikiArt

मुहब्बत में तुझे ठोकर लगी है

कमाने का वसीला है न खाने का कोई साधन परेशाँ आज कल हर आदमी है तो ग़लत क्या हैजहाँ रौशन दिये थे हमने फूकों से बुझाया है वहाँ पर आज फैली तीरगी है तो ग़लत क्या है

और जानेमुहब्बत में तुझे ठोकर लगी है
 ऋणजल धनजल : बावजूद जीवन
Last Journey by Vasily Perov- WikiArt

ऋणजल धनजल : बावजूद जीवन

‘दिनमान’ साप्ताहिक में यह रिपोर्ताज धारावाहिक रूप में लोगों के बीच आता है। रेणु की यह अद्भुत कृति गवाह है पटना की बाढ़ और दक्षिण बिहार के सुखाड़ का, वहीं दूसरी ओर सत्ता में बैठे लोगों की मनःस्थिति और उनके काले करतूत का भी। वे मनुष्य बने रहने पर बल देते हैं। वर्तमान में जिस प्रकार से गाँव और शहर के बीच एक अंतर दिख रहा है उस ओर भी रेणु की यह रचना संकेत करती है।

और जानेऋणजल धनजल : बावजूद जीवन
 मेरे अंदर गाँव बसता है
Unidentified village in India - DPLA - 8c9672bf53e9511aa9dd943d4075c3f6.jpg- Wikimedia Commons

मेरे अंदर गाँव बसता है

अँग्रेजी के विरोध का कारण है। अँग्रेजी अच्छी आनी है तो मातृभाषा के माध्यम से ही आ सकती है। मैं केवल भावुकतावश नहीं कह रहा हूँ। भाषा-विज्ञान विषय भी मेरा था। इसका मूल सिद्धांत यही है कि आप मातृभाषा में ही अच्छा सोच सकते हैं। सृष्टि का आकलन दुनिया का हर देश इसे मानता है

और जानेमेरे अंदर गाँव बसता है