वंसत का राग-रंग
समय देखता रहेगा! लोगों की फाग-मस्ती परवान चढ़ती ही रहेगी! हाँ, महानगरों में इस मस्ती का एहसास थोड़े विलंब से होता है,
समय देखता रहेगा! लोगों की फाग-मस्ती परवान चढ़ती ही रहेगी! हाँ, महानगरों में इस मस्ती का एहसास थोड़े विलंब से होता है,
सत्या शर्मा की कविताएँ अनुभव की उपज है जिसमें यथार्थ के साथ ही स्त्रियों की बेचैनी और स्वतंत्रता की अभिलाषा है।
नीलोत्पल की कविताएँ मानवता की पक्षधर हैं। वह ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना से सराबोर ‘जियो और जीने दो’ की हिमायत है।
मुझे आज तक नहीं आया भिड़ाना तुकें। मसला जीवन का हो या मृत्यु का मुझे आज तक नहीं आया कुछ ऐसा करना जो मैंने कभी नहीं चाहा।
हुकुम दिया है राजा ने गरियाओ उनके मर्दों को भेजो लानतें। जगाओ उनके मर्दों में जहर मर्दानगी का। करो उन्हें अपनी औरतों के खिलाफ ताकि लौट जाएँ चौराहों से घर की चार दीवारियों में।
शुक्रिया पहाड़! तुम हो तो कितने सुरक्षित हैं हम एक प्राकृतिक किला हो हमारा हमारे पूर्वजों के पुण्यों का फल। शुक्रिया सागर!