मैं भूल जाता हूँ

मैं आजकल बाजार से दृश्य लाता हूँ समेट कर आँखों में भूल जाता हूँ खर्च कितना किया समय? झोली टटोलती उँगलियों को आँखों के सौदे याद नहीं रहतेमैं पढ़ता जाता हूँ वह अनपढ़ी रह जाती है

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उत्तर-दक्षिण के शब्दसेतु

डॉ. नायर सरलचित्त-रचनाधर्मी थे, वे अंतिम साँस तक ‘नई धारा’ के माध्यम से उत्तर और दक्षिण भारत के शब्दसेतु बने रहे!

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गहरी गहरी साँसें

चुप क्यों हैं जवाब दीजिए न...कुछ तो बोलिए...आप चली गईं क्या...आप हैं नहीं क्या? गहरी-गहरी साँसें तो सुनाई दे रही हैं!

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साहित्यिक परिदृश्य की पड़ताल

अगर आप समय के साहित्य, समाज को जानना चाहें–राधेश्याम तिवारी के कवि से मिलना चाहें तो ‘कोहरे में यात्रा’ जरूर पढ़ें।

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डिजिटल सास

हर तरफ स्त्री आदर्श बनने की होड़ में लगी हुई हैं–आदर्श माँ, बहन, बेटी, बहू, दोस्त, सास, पत्नी व प्रेमिका। मेरी नजर में तो सबसे अनूठा रिश्ता होता है सास और बहू का।

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