पतझरों का मौसम है

पतझरों का मौसम है पत्तियाँ नहीं मिलतीं गुल नजर नहीं आते तितलियाँ नहीं मिलतीबस्तियों में दहशत है लोग हैं डरे सहमे अब खुली हुईं घर की खिड़कियाँ नहीं मिलतीं

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रात भर जागा हूँ

ख्वाब है तो ख्वाब जैसा ही रहे भीड़ का बन जाए ये परचम नहींखुद पे जाने कब तुझे हँसना पड़े गम निभा लेने का तुझमें दम नहींतेरा कहलाने का मतलब ये न था तू ही तू में ही रहें, हम, हम नहीं

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नजरिया

जानता हूँ सब कुछ जो इन दिनों घटित हो रहा है ठीक नहीं है बावजूद इसके भरोसा है सच के पक्ष में पूरी मजबूती से खड़ेन हारने वाले शब्दों

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मेरी कोरोना डायरी (दो)

प्रेम करो ताकि तुम्हारा जीवन पूर्ण हो, कोरोना व्याध को हराकर, हम सब यशस्वी हों, चिरंजीवी हों–विजयी हों।

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तुम्हारे नाम

खुशबू तेरी शब्द शब्द में छंद-छंद में रूप तुम्हारा पन्ने-पन्ने बरबस अंकित मधु मकरंद अनूप तुम्हारास्मृतियों में राग सुसज्जित जो मनहर रीत तुम्हारे नाम!

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अग्नि कोख में पलती अम्मा

कैसी भी हो विपदा चाहे उम्मीद दुआओं की उसको बिना थके ही बहते रहना सौगंध हवाओं की उसको चंदा-सा उगने से पहले सूरज जैसी ढलती अम्मा!

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