संवेदनाऔ के हमराज
दोनों एक दूसरे की तरफ पीठ किए... औरत बच्चों को देख खिलखिलाती होगी। और आदमी उस अखबार को खोल शाम की ताजा खबर से अपना जी बहलाता होगा। उठते समय एक का घुटना दुखता होगा
दोनों एक दूसरे की तरफ पीठ किए... औरत बच्चों को देख खिलखिलाती होगी। और आदमी उस अखबार को खोल शाम की ताजा खबर से अपना जी बहलाता होगा। उठते समय एक का घुटना दुखता होगा
पुरखों के दिन फिर से आ गए पैर की चोट ने फिर लाचार कर दिया सीढ़ियाँ नहीं चढ़ पाता हूँ इन दिनों भी। जाने कहाँ से आकर छत पर कौवे बोला करते हैं सबसे नीचे वाली सीढ़ी के पास कुर्सी डालकर बैठ गया हूँ।
रंग-बिरंगी इस दुनिया में अपना भी रंग जमाना मौसम चाहे जैसा भी हो तुम खिलना और खिलाना! अनुपम है यह देश हमारा अनुपम इसकी माटी है अनुपम है हर राग…
थोड़ी बरसात हुई जाने फिर भी भारी अफड़ा-तफड़ी मुखिया जी का कुनबा चौकस बता रहे सब लफड़ा-लफड़ीशोर मचा है गाँव नगर में चौकन्ने हैं गली-मोहल्ले!
लाठी गोली अमला फौज सब हो जाते बेकार जब भी शब्द लेते हैं रूप भाषा में ढलते हैं विचारतानाशाहों की उड़ जाती है नींद भोर के अंतिम पहर तक
छेड़िए मत गाँव की दुखती रगों को यूँ उसकी रग-रग में युगों की पीर निकलेगीवह भले धनवान हो जाए मगर उसमें लोभ के प्राचीर की तामीर निकलेगीसच तो ये है जानते हैं जितना हम, उससे देश की हालत कहीं गंभीर निकलेगी