झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई

बुंदेले हरबोलों ने मरकर भी अमर रानी को कुछ इस तरह याद किया–खुबई लरी मरदानी/अरे भई झाँसी वाली रानी।

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लोग कद से खासे लंबे जा रहे है

जिंदगी में लोग हैं बिल्कुल अकेले फेसबुक पर दोस्त जुड़ते जा रहे हैं आगे बढ़ने की ललक में किसने देखा लोग कितना पीछे छूटे जा रहे हैं

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मैंं जब-तब सोचकर डरता हूँ

उदासी के समंदर में डुबो दे उसका भारीपन अगर रो-रो के थोड़ा खुद को वह हल्का न कर डालेगरीबी खत्म कर डाले जरा-सी देर में खाना करे क्या माँ, अगर उसको तनिक तीखा न कर डालेकमा कर रख लिया है खूब सारा तुमने भी पैसा तुम्हारा भी शिकार इक दिन यही पैसा न कर डाले

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कविताओं में बालक

आज का बच्चा समस्याओं से जूझ रहा है। टूटते संयुक्त परिवारों ने बच्चों के सामने अनगिनत प्रश्न खड़े कर दिए हैं।

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अज्ञेय के उपन्यासों में संस्कृती विमर्श

व्यक्ति के पास वरण की स्वतंत्रता नहीं होती। न तो वह अपने मुताबिक जीवन चुन सकता है और न ही मृत्यु। सेल्मा मृत्यु के करीब है, लेकिन फिर भी जीवन से भरी हुई है। जबकि योके युवती है,

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रेणुु की कहानियों में लोकभाषा

फणीश्वरनाथ रेणु का कथा-साहित्य लोक-जीवन की भीत्ति पर निर्मित है। लोक-जीवन का विविध रूप इनकी कहानियों में अभिव्यक्त हुआ है।

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