सच मिटाने से कभी मिटता नहीं
सच मिटाने से कभी मिटता नहीं झूठ ज्यादा दिन तलक टिकता नहींआँख में थोड़ी हया रक्खा करो तेरे घर भी बेटी है दिखता नहींजो खुदा को भूल बैठे उसका सिर फिर कभी दरगाह पर झुकता नहीं
सच मिटाने से कभी मिटता नहीं झूठ ज्यादा दिन तलक टिकता नहींआँख में थोड़ी हया रक्खा करो तेरे घर भी बेटी है दिखता नहींजो खुदा को भूल बैठे उसका सिर फिर कभी दरगाह पर झुकता नहीं
हूँ उम्मीद की लौ बुझाओगे कैसे उजाला हूँ मुझको मिटाओगे कैसेचलन देश का भ्रष्ट जब हो गया है बता नौजवानों मिटाओगे कैसेअगर आरजू हौसला खो दिया तो
जिंदगी दाँव पर, मैं लगाती रही देश हित में कदम, मैं बढ़ाती रहीगाँव घर शहर शिक्षा से परिपूर्ण हो ज्ञान का दीप मैं तो जलाती रहीहर घड़ी नारियों को दे कर हौसला नारी सम्मान को मैं जगाती रही
वो दिल मुझसे लगाना चाहता है वो अब अपना बनाना चाहता हैनजर भर देख कर जीने लगा वो नजर में अब बसाना चाहता हैमेरी वो माँग हाथों से सजाकर मुझे दुल्हन बनाना चाहता है
कभी तपती हुई सी धूप हूँ मैं नारी हूँ पेय शीतल रूप हूँ मैंकभी हूँ अंत तो आरंभ भी हूँ काली, चंडी, कई स्वरूप हूँ मैंसदा मिहनत कि रोटी तोड़ती हूँ लबालब स्वेद की इक कूप हूँ मैं
जिद्दी पत्नी नहीं मानेगी। वह स्वयं बर्दाश्त कर सकती है पर उन्हें कष्ट हो यह श्रीमती जी को बर्दाश्त नहीं!