प्रेम

ईर्ष्या की आँच में जल रही है संसृति। हाँ इसी तरह जलते-जलते एक दिन पूरी सृष्टि जल जाएगी। सब समाप्त हो जाएगा फिर ना कोई ‘मैं’ और न कोई ‘तुम’

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प्रेम मार्ग से ज्ञान मार्ग की ओर

उनका प्रेम अब ज्ञानमार्गी हो चुका है। उनके ज्ञान चक्षु पूरी तरह खुल चुके हैं। यानी दिमाग के दरवाजे खुले रहते हैं और दिल के बंद।

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स्वप्न सच्चाई

रात के गहराते ही जब शिथिल पड़ जाती हैं इंद्रियाँ बढ़ जाता है दर्द सुई सी चुभती हैं यादें और उन यादों में लिपटा अतीत जहाँ मैं निःसहाय दिखती थी

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