प्रेम
ईर्ष्या की आँच में जल रही है संसृति। हाँ इसी तरह जलते-जलते एक दिन पूरी सृष्टि जल जाएगी। सब समाप्त हो जाएगा फिर ना कोई ‘मैं’ और न कोई ‘तुम’
ईर्ष्या की आँच में जल रही है संसृति। हाँ इसी तरह जलते-जलते एक दिन पूरी सृष्टि जल जाएगी। सब समाप्त हो जाएगा फिर ना कोई ‘मैं’ और न कोई ‘तुम’
जब-जब मानव परछा जाते हैं संकट के बादलहूंकार करता हुआअपना विकराल रूपदिखलाता– करता प्रहारतो, बारिश की बूँदों साकर्म रत
ट्रैक्टर नामक यांत्रिक वाहन ने खेतों से हल-बैल बेदखल कर ही छोड़ा, ‘हलवाह’ शब्द को अप्रासंगिक बना कर ही छोड़ा।
तांडव कर रही थीं उसके अंतर्मन की परछाइयाँ और शांत मुख मंडल तेज धड़कन गहरी आँखें सपाट ललाट सभी विद्रोह कर रहे थे
उनका प्रेम अब ज्ञानमार्गी हो चुका है। उनके ज्ञान चक्षु पूरी तरह खुल चुके हैं। यानी दिमाग के दरवाजे खुले रहते हैं और दिल के बंद।
रात के गहराते ही जब शिथिल पड़ जाती हैं इंद्रियाँ बढ़ जाता है दर्द सुई सी चुभती हैं यादें और उन यादों में लिपटा अतीत जहाँ मैं निःसहाय दिखती थी