बदलाव
चलो अब गैर-दलितों में विशेषकर ब्राह्मणों में भी जाति-पाति, ऊँच-नीच को लेकर बड़ी तेजी से बदलाव आ रहा है।
चलो अब गैर-दलितों में विशेषकर ब्राह्मणों में भी जाति-पाति, ऊँच-नीच को लेकर बड़ी तेजी से बदलाव आ रहा है।
जब तुम किसी काम को टालने के लिए हमेशा कहते थे–‘थोड़ा-सा और रुक जाएँ?’ याद करो, सालों पुरानी यही लाइन तकियाकलाम बनती गई।’
पेट की भूख। लत्ता-कपड़ा की भूख। छत-छाया की भूख। इनके बाद बड़ाई की भूख हुआ करती है। लखीनाथ सपेरा ने हाथ से पीतल का कड़ा निकाला। कानों में पहने कुंडल निकाले। बूड़ा रेत और घास की जड़ से रगड़-रगड़, मल-मल खूब धोए। चमक सोना को मात देने लगी।
देउस्कर का कहना है कि–अँग्रेज कहते हैं, हम तुमलोग को सभ्यता सिखा रहे हैं। हम भी समझते हैं, ‘अँग्रेजों के सहवास से हम सभ्य हो रहे हैं।’ इस पहेली की मीमांसा करते समय सर टॉमस मनरो ने कहा है–भारतवासियों को सभ्य बनाने की बात का मतलब ही मैं अच्छी तरह समझ नहीं सका हूँ।
क्या नेता गण लोगों से पैर छुआने के लिए ही मंत्री बनते हैं और इसी को जनसेवा का नाम देते हैं?
जितना शायद वह इन इक्यावन सालों के वैवाहिक जीवन में नहीं टूटी उससे ज्यादा इन सोलह दिनों में टूट चुकी थी।