गंगा सागर
हंसिया, दरांती खंभे के एक सिरे पर हाथ दूसरे पर बाँधकर अपना पैर हमने बना लिया है सेतु अपनी ही देह पर चढ़कर हम पार कर रहे हैं गंगा सागर!
हंसिया, दरांती खंभे के एक सिरे पर हाथ दूसरे पर बाँधकर अपना पैर हमने बना लिया है सेतु अपनी ही देह पर चढ़कर हम पार कर रहे हैं गंगा सागर!
हमें अपने से ही जतन करना था, अक्षत और दूब अपने से ही भरना था खोइंछा, सँभालना था अँचरा खुद ही रोना और खुद को ही चुप कराना था और इसी तरह विदा होना था
रेणु के व्यक्तित्व का निर्माण इसी सानो आमाँ के अंचल में हुआ। कोइराला-निवास में रहते हुए और आदर्श विद्यालय में पढ़ते हुए
बाँसों में उत्पन्न सरसराहट से जाग उठता मधुरमय नवगीत, सीप में छिपे जीव झिंगुर संग करते नृत्य, पूर्वोत्तर का है परिवेश जहाँ बसा है बाँसों का प्रदेश।
ऐसे कह दे कोई जैसे प्रथम प्रेम आखर, समर शेष में पलकों को मूँदें स्वयं को कोसती! फिर देती प्रेम परिमाटी को उलाहने हजार...
उस लेखक का आप क्या कर सकते हैं जिसके समूचे साहित्य में उसका जीवनानुभव घुसा हुआ हो! यह नागार्जुन ही थे