हिंदी कहानी में श्रमिक जीवन
सामाजिक-आर्थिक अंतर व्यक्ति और समुदायों में श्रेष्ठता और न्यूनता ग्रंथि को विकसित करता है यही भारतीय समाज के साथ भी हुआ।
सामाजिक-आर्थिक अंतर व्यक्ति और समुदायों में श्रेष्ठता और न्यूनता ग्रंथि को विकसित करता है यही भारतीय समाज के साथ भी हुआ।
पने माता-पिता के विरुद्ध जाकर कि तुम स्त्री समानता के पक्षधर हो तुम मुझे पूरा सम्मान दोगे मैं गलत थी या तुम सही हो?
कपड़े रंग गए थे होली के रंग की तरह खून मिश्रित हो गया था जख्म और सृष्टि दोनों का निर्माण की क्रिया में। लोग देख रहे थे
सूखने लगा था गला भरभरा रहा था प्यास से। भय ही भय था दूर क्षितिज तक अपने जैसे मानव की दर्दनाक मौत- दुर्गति देख कर,
बहुत दिनों के बाद बच्चों ने आँख मिचौली खेली है पार्क में बॉल उछली है। बहुत दिनों के बाद स्कूल की घंटी बजी है गरीब का चूल्हा हँसा है,
डूबते सूरज गिन रहा है जबकि वह अंतिम सूरज गिन चुका होगा साधारण आदमी के सूरज ऐसे ही बेमालूम डूबते हैं जैसे कहीं कुछ हुआ ही नहीं।