अभी-अभी निराला से हाथ मिलाकर

अभी-अभी निराला से हाथ मिलाकर आए थे वे सुनाने लगे हाल कि कैसे मिले थे पहली दफा और कैसा था रोमांच तब निराला लगते थे

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दलित नहीं,ठाकुर की पत्नी है

मैं ही नहीं बहुत दिनों तक डॉ. धर्मवीर भी यही समझते रहे कि– जिस महिला ने उन पर चप्पल चलाई वह एक दलित नारी है

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डार से टूटे हुए

‘भइया सतेन्द्रपाल ने जीवन भर समाज का साथ नहीं दिया। समाज रूपी डार से टूटे हुए लोग हैं ये! फिर आज समाज उनका साथ क्यों दे?’

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मधुकर गंगाधर की साहित्य-साधना

नया करने की प्रवृति के कारण ही मधुकर एक पात्र होते हुए भी तटस्थ दर्शक की भूमिका में दिखाई देते हैं।

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