अभी-अभी निराला से हाथ मिलाकर
अभी-अभी निराला से हाथ मिलाकर आए थे वे सुनाने लगे हाल कि कैसे मिले थे पहली दफा और कैसा था रोमांच तब निराला लगते थे
अभी-अभी निराला से हाथ मिलाकर आए थे वे सुनाने लगे हाल कि कैसे मिले थे पहली दफा और कैसा था रोमांच तब निराला लगते थे
मैं ही नहीं बहुत दिनों तक डॉ. धर्मवीर भी यही समझते रहे कि– जिस महिला ने उन पर चप्पल चलाई वह एक दलित नारी है
मेरे हाथ में पोटली थी, जिसमें वंश की धरोहर हँसुली हार थी। कभी उस हार को देखता, तो कभी बाबू को!
वे उनका बाल भी बाँका नहीं कर सकते थे। लेकिन, ऐसी प्रतीकात्मक ऑनर किलिंग से उन्हें जाने कैसा क्या संतोष मिला होगा।
‘भइया सतेन्द्रपाल ने जीवन भर समाज का साथ नहीं दिया। समाज रूपी डार से टूटे हुए लोग हैं ये! फिर आज समाज उनका साथ क्यों दे?’
नया करने की प्रवृति के कारण ही मधुकर एक पात्र होते हुए भी तटस्थ दर्शक की भूमिका में दिखाई देते हैं।