जागता रहूँ
मन भर धूल फाँक कर तुम इसी तरह जागते रहो। मैं इसी तरह भागता रहूँ तुम इसी तरह भागते रहो, मैं इसी तरह जागता रहूँ।
मन भर धूल फाँक कर तुम इसी तरह जागते रहो। मैं इसी तरह भागता रहूँ तुम इसी तरह भागते रहो, मैं इसी तरह जागता रहूँ।
एक पूरी, धकापेल तू भी क्यों नहीं चढ़ गया एक नक़द बारहखड़ी तू भी क्यों नहीं पढ़ गया? ‘मन पछितैहें अवसर बीते’
सिंधु बॉर्डर से किसान आंदोलन को संबोधित कर जब घर आई तो पूसी काफी सुस्त और खिन्न लगी। जान पड़ता था, मेरी अनुपस्थिति में न तो किसी ने उसको ठीक से खिलाया-पिलाया था, न नहलाया-धुलाया ही।
‘ओ बेपीर पीर, मैं हारी जाने दे, मैं हूँ अधमारी।’ भर बाजार अदालत सारी चाट रहे हैं ठग-पिंडारी!
जैसी कद-काठी हो वैसी ही लाठी हो वासुदेव! वासुदेव बातों की देवी को लातों की पड़ी टेव!