मरै सो जीवै : दादू दयाल

ईश्वर सब जगह है, तुम्हारे भीतर भी बाहर भी। बस यही जान लेना है। ज्यूँ का त्यूँ देखने की आदत डाल लेनी है, ‘दादू द्वैपख रहता सहज सो, सुख-दु:ख एक समान। मरे न जीवे सहज सो पूरा पद निर्वाण।’

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रावण जीत आए लोग

सब थे वहाँ। मैं भी था। बड़ी तादाद में लोग थे। लेकिन कोई किसी को नहीं जानता था, लेकिन हम सब ‘रावण’ को जानते थे। मैं भी ‘रावण’ को जानने की वजह से ही यहाँ आया था। एक ने मुझे टोका, ‘भाई साब–बाजू में हो जाइए बच्चे को रावण नहीं दिख रहा।’

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मैं जब खुद को समझा

मैं जब खुद को समझा और मुझमें कोई निकला औरयानी एक तजुरबा और फिर खाया इक धोखा औरहोती मेरी दुनिया और तू जो मुझको मिलता और

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भुट्टे वाला

कॉलोनी में भुट्टे वाला आया था। चिल्ला रहा था, ‘ये दखो मैडम आपकी मुस्कानों जैसे भुट्टे। ताजादम दोनों की कतारें देखो आप तो। एक-एक भुट्टे के हरे दुशाले खींच बताते जाता ‘आपलोग की हँसी की

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तू तो एक बहाना था

तू तो एक बहाना था मुझको धोखा खाना थामौसम रोज सुहाना था उसका आना-जाना थाआईना दिखलाना था उसको यूँ समझाना था

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फर्क

शेर और आदमी गुफा में लेटे हुए थे। तभी एक चूहा आया, शेर को छोड़ आदमी के ऊपर रेंगने लगा। आदमी ने पकड़ लिया उसे। आदमी के हाथ में आते ही दम घोटू आवाज में चिल्ला पड़ा, ‘शेर! शेर!!

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