श्यौराज सिंह बेचैन दलित दृष्टि के कहानीकार
समय के अनुसार कहानियाँ भी बदलती हैं और कहानी के पात्र भी बदलते हैं। कहानी की सार्थकता भी यही है। हर युग के भीतर संघर्ष की नई दिशाएँ, अनुभव का नया शेड, नया भाष्य भी होता है।
समय के अनुसार कहानियाँ भी बदलती हैं और कहानी के पात्र भी बदलते हैं। कहानी की सार्थकता भी यही है। हर युग के भीतर संघर्ष की नई दिशाएँ, अनुभव का नया शेड, नया भाष्य भी होता है।
मैंने जब दुनिया देखी, पापा! घर में फैल गया उजाला बेटी है लक्ष्मी कह माँ ने चुमा था।
भारतीय संस्कृति में अतिथि को देवता समझा जाता है। कहा गया है–अतिथि देवो भव।
यह दुनिया बदल गई है बदल गया है सोचने का ढंग चाल ढाल फैशन और मुलम्मा ने
गजल पहले भी बोलती थी और अब भी बोलती है। गजल पहले लुक-छिपकर किसी के खिलाफ कुछ बोलती थी, अब मुखर होकर कहती है।