जीवन-सौंदर्य की गजलें
गजल पहले भी बोलती थी और अब भी बोलती है। गजल पहले लुक-छिपकर किसी के खिलाफ कुछ बोलती थी, अब मुखर होकर कहती है।
गजल पहले भी बोलती थी और अब भी बोलती है। गजल पहले लुक-छिपकर किसी के खिलाफ कुछ बोलती थी, अब मुखर होकर कहती है।
हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार उदय राज सिंह का संपूर्ण रचनाकर्म मध्यवर्गीय नागर समाज के बहुपरतीय जीवन-संघर्ष और भावनात्मक रिश्ते की संवेदना को उकेरता अपने समय का जीवंत दस्तावेज है।
अनुवाद दो भाषाओं को जोड़ने वाला पुल है। अनुवाद के द्वारा ही हम किसी दूसरे देश, प्रांत के साहित्य, कला, संस्कृति व विज्ञान से परस्पर परिचित हो सकते हैं।
ऐसा न हुआ तो कहीं वैसा न हुआ तो सोचा किए हैं हम वही सोचा न हुआ तोकश्ती को सर पे लेके चला जा तो रहा हूँ रस्ते में तेरे घर की जो दरिया न हुआ तो
आज तुम्हें होना चाहिए था जेठ की चिलचिलाती रेत पर हम चल लेते, बहुत होता तो