अवदान

देखो भाई, मोहब्बत का झोंका और सोचने का मौका, इनका क्या साथ’–शैतान ने हँसते हुए कहा और औरत के घर की तरफ चल दिया। वहाँ पहुँचा तो वह भौचक्का रह गया। वह देखता है कि ईश्वर उस औरत के पास बैठा बातें बना रहा है, रह-रह मुस्करा पड़ता है, उसके तो सिर से लेकर पैर तक आग लग गई। इतने में ईश्वर उठा और चल दिया।

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संशयग्रस्त समय

घड़ियाल ने बीच में टोक दिया, ‘वक्त बेवक्त सब करना पड़ता है आखिर मैं भी तो बंदर के सामने रोया कि नहीं! हम में से किसी को किसी पर रत्ती भर भरोसा नहीं था।’ शेर समझता मैं और घड़ियाल मिले हुए हैं।

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मुझको जिस्म बनाकर देख

मुझको जिस्म बनाकर देख इक दिन मुझमें आकर देखजिसका उत्तर तू खुद है अब वो प्रश्न उठाकर देखअच्छा अपने ‘खुद’ को तू खुद में ही दफनाकर देख

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समय की आवाज का प्रतिबिंब

‘जिंदगी की है कहानी न कोई मंजर है/इस तरफ कुछ भी निशानी न कोई मंजर है/किसको अपना मैं कहूँ किसको बेगाना कह दूँ/बस मुझे चोट है खानी ना कोई मंजर है।’

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गठबंधन

जोरों की झमझम बारिश देख मुक्ता की इच्छा हो रही थी कि वह देर तक बैठकर इस टिप-टिप स्वर को सुनती रहे। इस स्वर के ताल में ताल मिलाकर वह अपने सारे दुःख भूल जाया करती थी। प्रकृति का यह नजारा उसे अपने बचपन में लेकर चला जाता था। वह ग्रीष्म ऋतु के बाद की पहली बरसात थी।

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