यादों में पिता
’ उस समय अपनी दोनों रोती बहनों पर मुझे बेतरह तरस आ रहा था। रो मैं भी रही थी लेकिन ज़ाहिर था कि मुख्य अपराधी बड़ी, ‘समझदार’ बहनें ही मानी जा रही थीं।उस दिन का अपने अंदर उबलता गुस्सा मुझे अभी तक याद है, ज़्यादा अपनी बहनों की बेबसी और लाचारी पर कि उन्हें सफ़ाई देने का मौक़ा क्यों नहीं दिया जा रहा? आपलोगों ने ही तो सिखाई है हमें, बड़ों से मुँह न लगने और जवाब न देने जैसी बातें। किदवई साहब हमें ज़बरदस्ती ले गए और नुक्कड़ तक के बदले टाउनहॉल तक घुमा लाए तो हमारी ग़लती?