लोग क़द से ख़ासे लंबे जा रहे हैं
आगे बढ़ने की ललक में किसने देखा लोग कितना पीछे छूटे जा रहे हैंहमने रिश्तों के लिए दौलत कमाई अब उसी दौलत से रिश्ते जा रहे हैं
आगे बढ़ने की ललक में किसने देखा लोग कितना पीछे छूटे जा रहे हैंहमने रिश्तों के लिए दौलत कमाई अब उसी दौलत से रिश्ते जा रहे हैं
अपनी कमियाँ भी नज़र आएँगी ही उसमें आदमी मन को अगर दर्पण करे तब तोकुछ भी तो बचपन सरीखा है नहीं निश्छल अपनी हर इक उम्र वह बचपन करे तब तो
दुश्मन के गढ़ में घुस कर उसे नेस्तनाबूद करने के बाद जैसे लौट आती है विजयिनी सेना छोड़ कर ध्वंसावशेष और अपनी विजय के ढेरों पद-चिह्न ठीक वैसे ही इत्मिनान,…
भले मत आना लेकिन आना ज़रूर अकुला, अकेले में हर्ष में, उल्लास में या गहन संत्रास में
हिमालय के आँगन में उसे प्रथम किरणों का दे उपहार उषा ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक हार।