कभी आके इधर हरियालियों पे बात
कभी आके इधर हरियालियों पे बात करते हैं उधर जाके समुंदर में कहीं बरसात करते हैंहमें दिन-रात क्या मालूम, उनको ही पता ये सब जगाकर दिन वे करते हैं सुलाकर रात करते हैंलगाकर आग दरिया में, सुरक्षित बच निकलते खुद किनारे बैठकर कहते कि तहकीकात करते हैं