बातों से तो प्यार उड़ाए जाते हो
बातों से तो प्यार उड़ाए जाते हो हाथों से अंगार उड़ाए जाते होजुमले बस दो-चार उड़ाते थे पहले अब तो रोज हजार उड़ाए जाते होचिनगारी क्या कम थी आग लगाने को जो इतना अंगार उड़ाए जाते हो
बातों से तो प्यार उड़ाए जाते हो हाथों से अंगार उड़ाए जाते होजुमले बस दो-चार उड़ाते थे पहले अब तो रोज हजार उड़ाए जाते होचिनगारी क्या कम थी आग लगाने को जो इतना अंगार उड़ाए जाते हो
यहाँ हम अपने समय के प्रसिद्ध लेखक अशोक वाजपेयी से संवाद करेंगे, जो कवि तो हैं ही, कलाविद हैं, प्रशासक हैं, बहुत अच्छा सोचते हैं, और जो एक पूरा कलाओं का संसार है उस पर उनकी गहरी नजर रहती है
तुम्हारा आना जेठ की दुपहरी में ठंडी बतास का बह जाना तुम्हारा साथ बादल के पास इंद्रधनुष का छाना।तुम्हारा मुस्कुराना अँधेरी रात में बिजली का कौंध जाना तुम्हारी बातें भोर की बेला में गौरैया का चहचहाना।
मैं हूँ एक हवा का झोंका मस्ती से मेरा अनुबंध इधर चली अब उधर उड़ी इतने से मेरा संबंध।मेरा कोई आकार नहीं है न मेरा है कोई रंग दामन में निज खुशबू समेटे मैं तो हूँ औघर अनंग।मलयानिल बन कभी चलूँ मैं सबको बाँटूँ विपुल उमंग हिमगिरि से जब मैं नीचे उतरूँ लाऊँ शीतलता अपने संग।
‘बापू, अब मैं शहर जा रहा हूँ। रिजल्ट आने वाला है, सोचता हूँ, कोई नौकरी ढूँढ़ लूँ! रुपये-पैसों की फिकर मत करना। मैं शहर से भेजता रहूँगा। और हाँ, मेरा काम अब यहाँ चाची का बेटा मनोज सँभाल लेगा।’ जवाब तो किसी ने कुछ न दिया पर ख्याली ने गौर किया कि बापू और माँ उसे अलग ही चमक वाली आँखों से देख रहे हैं। इस चमक में बेटे के प्रति ऐसा यकीन भरा हुआ था जिसके आगे दुनिया की हर चीज की चमक फीकी थी।
बरसों बरसों पहले की यात्राएँ कवि स्मृति में जीवंत हैं और यही उसकी कविता यात्रा की पाथेय है। वह पहाड़ों के साथ, नदियों के साथ, पेड़ों के साथ यात्राएँ करता रहा है और इस यायावरी में इस समय की पटकथा लिखता रहा है।