आजकल जल्दी ही थक जाते हैं

आजकल जल्दी ही कुछ कदमों पर ही थकने लगते हैं... एहसास, जज्बात संबंध और साथकिसी अंधी होड़-दौड़ की तेज चाल के साथ नहीं मिल पाती कदम तालतारी होने लगता है अहम घुसपैठ करने लगता है स्वार्थ

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आपसे नजदीकियाँ हैं

आपसे नजदीकियाँ हैं इसलिए तन्हाइयाँ हैंआसमाँ पर ये सितारे आपकी रानाइयाँ हैंआशियाँ है खास तो क्या बिजलियाँ तो बिजलियाँ हैं

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शब्दों की बारात

जब ढेरों संवाद अकुला रहे होते हैं अव्यक्त मानस में कर रहे होते हैं संवाद निरंतर भीतर ही भीतरजिनकी कानों को भी नहीं लग पाती भनक वे दमित शब्द और उनका मौन चिंघाड़ता हुआ प्रकट होता है कविता मेंऔर कविता होती है उन चिंघाड़ते हुए शब्दों की बारात...

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शर्मनाक हादसों के गवाह

हम जो अपने समय के सबसे शर्मनाक हादसों के गवाह लोग हैं हम जो अपने समय की गवाही से मुकरे डरे, सहमे, मरे से लोग हैं।

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मुझको अपने पास बुला कर

मुझको अपने पास बुला कर तू भी अपने साथ रहा करअपनी ही तस्वीर बना कर देख न पाया आँख उठा करबे-उन्वान रहेंगी वर्ना तहरीरों पर नाम लिखा कर

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बिच्छू के दंश से घोंघा सड़क पर

बिच्छू–पैसा और पावर जब तक आंदोलन की राह में नहीं आते, तभी तक वे अपनी असली जंग लड़ते हैं। इनके आते ही आंदोलन के सर्वे-सर्वाओं की आपसी जंग शुरू हो जाती है। खामियाजा मेरे जैसा निर्दोष ही भुगतता है।

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