बुद्धत्व
अपने एकांत को उत्सव बना लेना क्या यही बुद्धत्व नहीं मैं?अपनी आकुलता को परम संतोष बना लेना क्या यही बुद्धत्व नहीं?
अपने एकांत को उत्सव बना लेना क्या यही बुद्धत्व नहीं मैं?अपनी आकुलता को परम संतोष बना लेना क्या यही बुद्धत्व नहीं?
बात बातों से भी बनी तो नहीं जंग फिर से वही ठनी तो नहींचाय की चुस्कियाँ चलीं कितनी पर हुई कम भी दुश्मनी तो नहींबात में भी तनाव इतना था मेज भी रह गई तनी तो नहीं
वक्त की पदचाप सुनकर देखिए सुन सकेंगे आप, सुनकर देखिएहम उबलके जो न कह पाए अभी कह रही है भाप, सुनकर देखिएकौन है वो देवता किसका अभी चल रहा है जाप, सुनकर देखिए
बाँध-पुल और सड़कों के नाम पर अंधी दौड़ दौड़ोगे मैं फिर नोचूँगी तुम्हारा चेहरा और फिर छोड़ूँगी ऐसे ही निशान! सावधान! सावधान!
मैंने मन के कोने में एक संदूक छिपा रखी है दिन प्रतिदिन होती जा रही है यह और भी भारी इसमें है कुछ शब्द जो हर बार कहने पर भी बात रह जाती है अधूरी
नष्ट कर दिए गए हैं आश्वस्ति के बादल नहीं जाना उस राह मुझे जहाँ है सिर्फ अनुरक्ति के दलदल मौन हूँ विच्छेद हूँ सब रिश्तों से विभेद हूँ समय ने तोड़ा अपनो से झंझोड़ा-मोड़ा फिर भी, मैं सब से जुड़ी रही तुम्हें मन ही मन गुनती रही