तुम जिसे शाम या सहर कहते
तुम जिसे शाम या सहर कहते हम उसे सिर्फ दोपहर कहतेबर्फ पिघली कि खुल गए रस्ते मौसमी ही है ये असर कहतेदेख लोगे धुआँ भी दरिया का थम जरा आँख में ठहर, कहते
तुम जिसे शाम या सहर कहते हम उसे सिर्फ दोपहर कहतेबर्फ पिघली कि खुल गए रस्ते मौसमी ही है ये असर कहतेदेख लोगे धुआँ भी दरिया का थम जरा आँख में ठहर, कहते
अपने एकांत को उत्सव बना लेना क्या यही बुद्धत्व नहीं मैं?अपनी आकुलता को परम संतोष बना लेना क्या यही बुद्धत्व नहीं?
बात बातों से भी बनी तो नहीं जंग फिर से वही ठनी तो नहींचाय की चुस्कियाँ चलीं कितनी पर हुई कम भी दुश्मनी तो नहींबात में भी तनाव इतना था मेज भी रह गई तनी तो नहीं
वक्त की पदचाप सुनकर देखिए सुन सकेंगे आप, सुनकर देखिएहम उबलके जो न कह पाए अभी कह रही है भाप, सुनकर देखिएकौन है वो देवता किसका अभी चल रहा है जाप, सुनकर देखिए
बाँध-पुल और सड़कों के नाम पर अंधी दौड़ दौड़ोगे मैं फिर नोचूँगी तुम्हारा चेहरा और फिर छोड़ूँगी ऐसे ही निशान! सावधान! सावधान!
मैंने मन के कोने में एक संदूक छिपा रखी है दिन प्रतिदिन होती जा रही है यह और भी भारी इसमें है कुछ शब्द जो हर बार कहने पर भी बात रह जाती है अधूरी