भ्रम
एक छोटी नहर त्रिवेणी जैसी जिसे मैं कदम भर में लाँघकर पढ़ सकता हूँ दूर कहीं बहकर कहते हैं किसी नदी में जाकर मिलती है एक नदी महाकाव्य जैसी जिसमें मूर्तियों के साथ कभी मेरा भी विसर्जन हो, ऐसा मैं चाहता हूँ
एक छोटी नहर त्रिवेणी जैसी जिसे मैं कदम भर में लाँघकर पढ़ सकता हूँ दूर कहीं बहकर कहते हैं किसी नदी में जाकर मिलती है एक नदी महाकाव्य जैसी जिसमें मूर्तियों के साथ कभी मेरा भी विसर्जन हो, ऐसा मैं चाहता हूँ
शोषण की ओर जाते हैं समाज प्रेम में छुअन की भूमिका को छिपा रहा है मंदिर में रखी मूर्ति के पीछे और किसी पुरानी किताब के पीछे हमें पता है
रंग सकता था दीवाल को भी हरा, सफेद, काला या कोई भी रंग जो उसके पास होता रंग नहीं होता तो रंग सकता था सड़क से समेटकर धूल का भूरा रंग
मैं मूर्ख गिम्पेल हूँ। मैं खुद को मूर्ख नहीं समझता, बल्कि मैं तो खुद को इसके ठीक उलट ही मानता हूँ। किंतु लोग मुझे मूर्ख कहते हैं।
उन्हें मालूम है कि भीड़ का होना इस दुनिया का होना है भीड़ जो बनती है इस मुल्क में वतन की लौ जैसे मशालें जलती हैं धरती के इस कोने
जड़ हो या चेतन दिखा तो नहीं कोई जिसमें प्यास न हो। गुजर कर तो देखो पत्थरों के पास से थोड़ी भीगी-सी सहलाने की आहट लिए।