मत कुतर देना
मुझे रहने दो थमा कितनी गतिशीलता है इसमें!सँभालो, सँभालो मेरे अभी-अभी आए पंखों को इनकी मासूम उड़ान को।मत कुतर देना इन्हें कविता समझ अरे, ओ, हतभागी निषाद।
मुझे रहने दो थमा कितनी गतिशीलता है इसमें!सँभालो, सँभालो मेरे अभी-अभी आए पंखों को इनकी मासूम उड़ान को।मत कुतर देना इन्हें कविता समझ अरे, ओ, हतभागी निषाद।
पांडेय जी के व्यक्तित्व और कृतित्व का बहुकोणीय विवेचन तो किया ही है, उनके लेखन की बानगी का भी एक खंड ग्रंथ में है, जिसमें उनका अप्रकाशित उपन्यास ‘फरिश्ते’ भी है।
नहीं रहा मैं कभी ठहर कर अतीत में या वर्तमान में ही।रहा हूँ सदा भविष्य में भले ही जीते हुए वर्तमान में।
मच्छरों से डरकर, हारकर कैद हो रहा है इनसान और अपने कैदखाने का नाम दे रहा है–मच्छरदानी। इतने में बिजली आ गई और डॉ. साहिबा चाय
अनुरंजन प्रसाद सिंह साहित्य की दुनिया में जिस महत्त्व के अधिकारी हैं, वह महत्त्व उन्हें हम बिहारवासियों ने कभी नहीं दिया।
मुझे यह कहते हुए संकोच नहीं कि अखबारनवीसी शैली और वायवीय अभिव्यक्ति से अब तक बची युवा कवि शहंशाह आलम की लोक-प्रसूत कविताएँ किसी समालोचना की मोहताज़ नहीं,