रहिमन पानी राखिये
‘रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून’ कभी कहा था रहीम बाबा ने फिर भी पानी को बेपानी किया गया बेहिसाब
‘रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून’ कभी कहा था रहीम बाबा ने फिर भी पानी को बेपानी किया गया बेहिसाब
रात में दीनानाथ ने अपनी पत्नी से कहा–‘अब हम अपने मकान में रहते हुए पूरे सौ वर्ष जिएँगे।’ उनकी पत्नी ने हँसकर कहा–‘सिर्फ सौ वर्ष ही क्यों?
तुम्हारे डिक्सनरी से हटता क्यों नहीं पर, किंतु, परंतु जैसे कई बड़े-बड़े शब्द। कलम चलाते चलाते अक्सर रुक जाते हैं तुम्हारे हाथ कलम पर उँगलियाँ फिराते गोल-मटोल घुमाने लगते हो तुम्हारे वो मकसदी बात।
बेटियाँ हैं तो बीमार माँ के सिरहाने टेबुल पर सज जाती है दतवन, कंघी, दवाई, गमछा और लोटा भर सुसुम पानी।
न आँगन में चहलकदमी करते वीरान पड़ी मरुभूमि में हरियाली, बगिया में कोयल की कूक पक्षियों का चहकना बच्चों की किलकारियाँ, उग आए हैं…
‘मर्द की जबान पकड़ना औरत के वश में कहाँ है बाबा? लेकिन यह बता देते कि कानून लिखा कहाँ जाता है, लिखता कौन है? तो चलकर उसी से फरियाद करते कि हमारे बालकिशन जैसों के जीने-खाने के लिए भी ‘दू अक्षर’ कानून लिख देते।’